एक रही।
Bhumi
06:44
न जाने किन राहों में चलते-चलते, खो गए हैं हम
इन गुलशन तन्हाइयों के बीच, सपनें सो गए हैं अब।
दिलों की है ये दास्तान,
सब नसीब का है कारोबार
इन्ही गुमशुदा राहों में
ज़िन्दगी से आँखें हुई थीं चार।
झाँका था उस समय जब हमने दीवार के उस पार,
दिखे कुछ बिखरे हुए...
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