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सरहद पर
कभी ठंड में
कभी चिचिलाती धुप में
इस देश को छाँव करता है
मेरे देश का जवान कुछ ऐसा है।
खुद के त्यौहार कुर्बान करके
दुश्मन के अड्डे तबाह करके
वो सीमाओं की सुरक्षा करता है
मेरे देश का जवान कुछ ऐसा है।
बेख़बर कार्तिक-फाल्गुन के
बमों की आकाशबाज़ी
व ख़ून की होली वो खेलता है
मेरे देश का जवान कुछ ऐसा है।
खुदके कपड़े एक-रंगा कर
परिवार अपना बेरंगा कर
इस देश को सतरंगा रंगता है
मेरे देश का जवान कुछ ऐसा है।
अपनी नींदे भुला के
बिना पलक झपकाए
जिसको तैनात देख,
दुश्मन दबे पैर भग जाए।
कभी पिता, कभी पति,
कभी भाई, कभी बंधु ;
कभी ममता के आँचल में
कभी भारत की मिट्टी में जो सोता है
इस देश का जवान कुछ ऐसा है
मेरे देश का जवान कुछ ऐसा है।
~Varia
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